Thursday, February 25, 2010

सुदामा चरित

विप्र सुदामा बसत हैं, सदा आपने धाम।
भीख माँगि भोजन करैं, हिये जपत हरि-नाम॥
ताकी घरनी पतिव्रता, गहै वेद की रीति।
सलज सुशील सुबुद्धि अति, पति सेवा सौं प्रीति॥
कह्यौ सुदामा एक दिन, कृस्न हमारे मित्र।
करत रहति उपदेस गुरु, ऐसो परम विचित्र॥

(सुदामा की पत्नी)
लोचन-कमल, दुख मोचन, तिलक भाल,
स्रवननि कुंडल, मुकुट माथ हैं।
ओढ़े पीत बसन, गरे में बैजयंती माल,
संख-चक्र-गदा और पद्म लिये हाथ हैं।
विद्व नरोत्तम संदीपनि गुरु के पास,
तुम ही कहत हम पढ़े एक साथ हैं।
द्वारिका के गये हरि दारिद हरैंगे पिय,
द्वारिका के नाथ वै अनाथन के नाथ हैं॥

(सुदामा)
सिच्छक हौं, सिगरे जग को तिय, ताको कहाँ अब देति है सिच्छा।
जे तप कै परलोक सुधारत, संपति की तिनके नहि इच्छा॥
मेरे हिये हरि के पद-पंकज, बार हजार लै देखि परिच्छा।
औरन को धन चाहिये बावरि, ब्राह्मन को धन केवल भिच्छा॥

(सुदामा की पत्नी)
कोदों, सवाँ जुरितो भरि पेट, तौ चाहति ना दधि दूध मठौती।
सीत बितीतत जौ सिसियातहिं, हौं हठती पै तुम्हें न हठौती॥
जो जनती न हितू हरि सों तुम्हें, काहे को द्वारिकै पेलि पठौती।
या घर ते न गयौ कबहूँ पिय, टूटो तवा अरु फूटी कठौती॥

(सुदामा)
छाँड़ि सबै जक तोहि लगी बक, आठहु जाम यहै झक ठानी।
जातहि दैहैं, लदाय लढ़ा भरि, भरि लैहैं लदाय यहै जिय जानी॥
पाँउ कहाँ ते अटारि अटा, जिनको विधि दीन्हि है टूटि सी छानी।
जो पै दरिद्र लिखो है ललाट तौ, काहु पै मेटि न जात अयानी॥

(सुदामा की पत्नी)
विप्र के भगत हरि जगत विदित बंधु,
लेत सब ही की सुधि ऐसे महादानि हैं।
पढ़े एक चटसार कही तुम कैयो बार,
लोचन अपार वै तुम्हैं न पहिचानि हैं।
एक दीनबंधु कृपासिंधु फेरि गुरुबंधु,
तुम सम कौन दीन जाकौ जिय जानि हैं।
नाम लेते चौगुनी, गये तें द्वार सौगुनी सो,
देखत सहस्त्र गुनी प्रीति प्रभु मानि हैं॥

(सुदामा)
द्वारिका जाहु जू द्वारिका जाहु जू, आठहु जाम यहै झक तेरे।
जौ न कहौ करिये तो बड़ौ दुख, जैये कहाँ अपनी गति हेरे॥
द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँ, भूपति जान न पावत नेरे।
पाँच सुपारि तै देखु बिचार कै, भेंट को चारि न चाउर मेरे॥

यह सुनि कै तब ब्राह्मनी, गई परोसी पास।
पाव सेर चाउर लिये, आई सहित हुलास॥
सिद्धि करी गनपति सुमिरि, बाँधि दुपटिया खूँट।
माँगत खात चले तहाँ, मारग वाली बूट॥

दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमई,
एक तें सरस एक द्वारिका के भौन हैं।
पूछे बिन कोऊ कहूँ काहू सों न करे बात,
देवता से बैठे सब साधि-साधि मौन हैं।
देखत सुदामै धाय पौरजन गहे पाँय,
कृपा करि कहौ विप्र कहाँ कीन्हौ गौन हैं।
धीरज अधीर के हरन पर पीर के,
बताओ बलवीर के महल यहाँ कौन हैं?

(श्रीकृष्ण का द्वारपाल)
सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनि,
छाँड़े राज-काज ऐसे जी की गति जानै को?
द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँय,
भेंटत लपटाय करि ऐसे दुख सानै को?
नैन दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरि,
बिप्र बोल्यौं विपदा में मोहि पहिचाने को?
जैसी तुम करौ तैसी करै को कृपा के सिंधु,
ऐसी प्रीति दीनबंधु! दीनन सौ माने को?

ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥

(श्री कृष्ण)
कछु भाभी हमको दियौ, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहौ केहि हेत॥

आगे चना गुरु-मातु दिये त, लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने।
श्याम कह्यौ मुसुकाय सुदामा सों, चोरि कि बानि में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा-रस भीने।
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुम, तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥

देनो हुतौ सो दै चुके, बिप्र न जानी गाथ।
चलती बेर गोपाल जू, कछू न दीन्हौं हाथ॥
वह पुलकनि वह उठ मिलनि, वह आदर की भाँति।
यह पठवनि गोपाल की, कछू ना जानी जाति॥
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।
कहा भयौ जो अब भयौ, हरि को राज-समाज॥
हौं कब इत आवत हुतौ, वाही पठ्यौ ठेलि।
कहिहौं धनि सौं जाइकै, अब धन धरौ सकेलि॥

वैसेइ राज-समाज बने, गज-बाजि घने, मन संभ्रम छायौ।
वैसेइ कंचन के सब धाम हैं, द्वारिके के महिलों फिरि आयौ।
भौन बिलोकिबे को मन लोचत सोचत ही सब गाँव मँझायौ।
पूछत पाँड़े फिरैं सबसों पर झोपरी को कहूँ खोज न पायौ॥

कनक-दंड कर में लिये, द्वारपाल हैं द्वार।
जाय दिखायौ सबनि लैं, या है महल तुम्हार॥

टूटी सी मड़ैया मेरी परी हुती याही ठौर,
तामैं परो दुख काटौं कहाँ हेम-धाम री।
जेवर-जराऊ तुम साजे प्रति अंग-अंग,
सखी सोहै संग वह छूछी हुती छाम री।
तुम तो पटंबर री ओढ़े किनारीदार,
सारी जरतारी वह ओढ़े कारी कामरी।
मेरी वा पंडाइन तिहारी अनुहार ही पै,
विपदा सताई वह पाई कहाँ पामरी?

कै वह टूटि-सि छानि हती कहाँ, कंचन के सब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हती कहँ, लै गजराजुहु ठाढ़े महावत॥
भूमि कठोर पै रात कटै कहाँ, कोमल सेज पै नींद न आवत।
कैं जुरतो नहिं कोदो सवाँ प्रभु, के परताप तै दाख न भावत॥

सुदामा चरित / नरोत्तमदास

कारवाँ गुज़र गया

स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए,
छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुकेझुके,
मोड़ पर रुकेरुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा,
इस तरफ ज़मीन उठी तो आसमान उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटेलुटे,
वक्त से पिटेपिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

माँग भर चली कि एक, जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

- गोपालदास नीरज

KADAMB KA PED

YEH KADAMB KA PED AGAR MAA, HOTA YAMUNA TEERE,
MAIN BHI US PAR BAITH KANHIYA,BANTA DHEERE,
DHEERE...
LE DETI YADI BANSURI ,TUM DO PAISE WALI,
KISI TARAH NEECHE HO JATI YE KADAMB KI DALI,

TUMHEIN NAHI KUCH KEHTA,PAR MAIN,
CHUPKE CHUPKE AATA,
US NEECHI DALI SE AMMA, UNCHE PE CHAD JATA....

WAHIN BAITH PHIR ,BADE MAJE SE,
MAIN BANSURI BAJATA,
AMMA AMMA KEH TUMHEIN BANSI KE,
SWAR MEIN BULATA....

SUN MERI BANSI KO MAA TUM ITNI,
KHUSH HO JATI,
MUJHE DEKHNE KAAM CHOR KAR,
TUM BAHAR TAK AATI....

TUMKO AATA DEKH BANSURI RAKH ,
MAIN CHUP HO JATA,
PATTON MEIN CHIPKAR DHEERE SE,
PHIR BANSURI BAJATA...

GUSSE HOKAR MUJHE DANTI KEHTI,
"NEECHE AAJA",
PAR JAB MAIN NA UTARTA,HANS KAR KEHTI,
"MUNNA RAJA"....

NEECHE UTRO MERE BETA ,TUMHEIN MITHAI DUNGI,
NAYE KHILONE,MAKHAN,MISRI,
DHOODH MALAI DUNGI...

MAIN HANS KAR SABE UPAAR KI TEHNI ,
PAR CHAD JATA,
EK BAAR "MAA" KEH PATTON MEIN WAHIN,
KAHIN CHIP JATA...

BAHUT BULANE PAR BHI "MAA",
JAB MAIN NA UTAR KAR AATA,
TAB "MAA" TUMHARA HARIDAY,
BAHUT VIKAL HO JATA...

TUM AANCHAL PASAR KAR MAA WAHIN PED KE NEECHE,
EESHWAR SE KUCH VINTI KARTI,
BAITHI AANKHEIN MEECHEY.....

TUMHEIN DHYAN MEIN LAGI DEKH,
MAIN DHEERE DHEERE AATA,
AUR TUMHARE FAILE AANCHAL MEIN,
AAKAR CHIP JATA...

TUM GHABRA KAR AANKH KHOLTI,
PHIR BHI KHUSH HO JATI,
JAB APNE "MUNNE RAJA" KO,
APNI GODI MEIN HI PATI....

ISI TARAH KUCH KHELA KARTE,
HUM TUM DHEERE DHEERE,
"MAA" KADAMB KA PED AGAR,
YE HOTA YAMUNA TEERE.......

Monday, February 22, 2010

आशा का दीपक

वह प्रदीप जो दीख रहा हइ झिलमिल, दूर नहीं है;
थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।

चिनगारी बन गयी लहू की बूँद जो पग से;
चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण-चिन्ह जगमग से।
शुरू हुई आराध्य-भुमि यह, क्लान्ति नहीं रे राही;
और नहीं तो पाँव लगे हैं क्यों पड़ने दगमग से?
बाकी होश तभी तक जब तक जलता तूर नहीं है;
थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।

अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का,
सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश का।
एक खेय है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ;
वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का।
आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है;
थककर बाइठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।

दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही,
अम्बर पर घन बन छाएगा ही उच्छ्वास तुम्हारा।
और अधिक ले जाँच, देवता इतन क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।

Sunday, February 21, 2010

EKTA KAPOOR JI APNE BHI KYA SIRIAL BANAYA

EKTA KAPOOR JI APNE BHI KYA SIRIAL BANAYA
KAHANI GHAR GHAR KI LEKAR,
KYOUN KI SAAS BHI KABHI BAHU THI MEIN LAFDA KARWAYA
HAR LAFDE KI SHOOTING NIKAAL KAR
SARE ZAMANA KO DEKHAYA
WAH WAH APNE BHI KYA SERIAL BANAYA
PARIWAR WALO KE PAAS
DHAIR SARI DOULAT DEKHAYEE
KAHAN SE AAYE YEH DOULAT
KISI KO NAHI DEKHAYEE
FASHION KI CHAKA CHOUNK MEIN
PARIWAR KI MARIYADA DESH KI SANSKRITI
YEH DEKHAWA AUR JHOOTA NATAK HAI
KAHI KISI ROOZ NAHI HAR DIN DEKHAYA
GHAREEB HO YA AMEER SARE PURSHO KO
KASUTI ZINDAGI KI DAGAR PER THAIRAYA
BAJAJ PARIWAR, VIRANI PARIWAR, AGARWAL PARIWAR
YEH PARIWAR O PARIWAR NA JANE KAISE KAISE PARIWAR
INKE SARE PARIWARIK JHAGDE
STAR PLUS PER KHUL KAR DEKHAYA
INHI JHAGDO NE AAP KO AWARD BHI DILWAYA
PATI PATNI, SAAS BAHU, JAIT JAITANI, NANAND BHOUJAYE, IN SABHI RISHTO KO
EKTA NE JAB CHAHA JAHA CHAHA PAL PAL HAR WAQT NACHAYA
DEKH KAR IN BANAWATI RISHTO KO
SAR MERE CHAKRAYA KASAM SE
TULSI SE PEHLE MUJHSE RONA AAYA.
KAUN KIS KA PATI HAI, AUR KAUN KIS KI PATNI
EKTA TUMHE BHI SAMAJ NA AAYA
KARAM APNA APNA KA WASTA DE KAR
SAMAJ AUR MERE PARIWAR PER QAYAMAT DHAYA
WAH WAH EKTA TUNE BHI KYA SERIEL BANWAYA
AAP KE YEH SERIAL DEKHKAR SANJEEV KUMAR GHABRAYA

Thursday, February 11, 2010

नही छोडेंगे हम धुम्रपान कभी

फूंकने का कर्तव्य है हमारा
और सहना धरम है तुम्हारा
कहीं भी कभी भी किसी भी हाल में
तलब मिटाना हमको खूब भाता है
बच्चें हों, बुजुर्ग हों, बीमार हों या भीड़ हों
बेशक पर्यावरण का कितना भी सर्वनाश हों
अरे भाई पढे लिखे है हम बहुत
यह विज्ञापन और प्रतिबन्ध
भला हमको कोई रोक पाएंगे
जान लीजिये यह जरुरी बात
की धुम्रपान उतना ही जरुरी है हम लोगों के लिए
जितना शरीर में आत्मा का होना जरुरी है
यूं भी यह कोई इतनी बुरी चीज़ नही
शान औ शौकत के अंदाज़ हैं
बड़े बड़े लोग करते है
या यूं कहिये जो करते है
वो ही बड़े हों जाते है
क्या अदा किस मस्ती से और जूनून का
पुरा लुत्फ़ उठाते है
चिंता हों या कैसा भी दर्द
हर चीज़ में बड़ा सहारा मिलता है
वैसे भी जवानी का मतलब ?
बड़े हों गए है अब आजाद परिंदे हैं
सिगरेट के हर कश से नई नई
कल्प्नाओ को ऊँची उड़ान मिलती है
रोब और ताकत का सर्वोत्तम विकल्प है ये
अब आप चाहे कितनी भी बड़ी बिमरिओं का वास्ता दे लीजिये
डरा लीजिये, समझा लीजिये
कानून पर कानून खूब बना लीजिये
परन्तु इतना हमारा भी सुन लीजिये
की धुम्रपान बेहद जरुरी है
चाहे हमको आप कितना भी ख़ुद में कमजोर कह लीजिये
पर हमें कोई ताकत नही रोक सकती ऐसा करने के लिए
बेशक कल को हमारे बच्चे
रोग लेके जन्में हमारी वजह से
और बेचारे कितने भी बन जाए मरीज हमारे धुंये की वजह से
ये इन सबका नसीब है
हमको क्या मतलब दूसरो की जिन्दगी से
जो होना हो
होए हमारी बाला से
हमें जीवन मिला है
भगवन की कृपा से
और हम जियेंगे इसको सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी तरह से
कोई कर्तव्य और कोई धरम और कोई बोल बचन
हमको बाँध नही सकते
धुम्रपान रोकने की प्रतिज्ञा से

( धुम्रपान करने वालों के प्रति पुरी इज्ज़त और सम्मान से)
(रचनाकार : रवि कवि )